Adaptation of the song Kabhi Kabhi mere dil mein to question a privileged person's perspective of a marginalised person being "lazy" through a split second reflection at the entrance of a temple.
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता हैं
आता हैं की क्या करू मैं तेरा?
तुझे देख के अनदेखा करू या..
वो बोली, ए मसीहा, तू हैं इसीलिए मैं हु ! मैं हु इसीलिए तू हैं
की जैसे तुझको बनाया गया हैं मेरे लिए
मैं बोला, है ! ये कैसी अनहोनी !
तू अबसे पहले सितारों मैं बस रही थी कही? तुझे ज़मीं पर बुलाया गया हैं मेरे लिए !
मेरे लिए?
वो हसी! देखा मैंने उसके टूटे पुराने दांत, और फटे पुराने कपडे
मैंने उसे फिर पूछा , कोई काम नहीं कर सकती?
वोह फिर हसीं! है!
मैं चौका, वोह बोली,
मुझ जैसी बूढ़ी भिकारन को कौन काम देगा, साहिब?
में चुप वोह फिर हसीं। मैंने अपने पैंट की पॉकेट से कुछ दस रुपये निकाल उसे दिए।
और चल पड़ा अपने भगवान के दर्शन करने
न जाने क्यो , कभी कभी मेरे दिल मैं ख्याल आता है